‘गीति मंजरी’ हिन्दी आरोॅ अंगिका केॅ प्रशस्य गीति-लेखक आरोॅ संगीतज्ञ विद्यावाचस्पति बैकुण्ठ विहारी के कुल 79 अंगिका गीतोॅ के पुंज छेकै।
‘गीति मंजरी’ अनुभूति जनित कविता छेकै। ई गीति-लेखक के सभ्भेटा गीति विहारी जी के आत्मा रोॅ वाणी छेकै। ई सब गीति में भक्ति, निगुर्ण भाव, ऋतु, कृषि, देशभक्ति आरो शृंगार के मिलन आरो विरह भावोॅ केॅ अभिव्यक्ति मिललो छै।
भाव-प्रवणता, छन्दबद्धता, लयात्मकता, गत्यात्मकता, एकतानता, संगीतात्मकता, संक्षिप्तता, संप्रेषणीयता आरोॅ स्मृति-सुलभता ‘गीति मंजरी’ के गीति सिनी रोॅ विषेषता छेकै।
शास्त्रीय ताल-लय आरोॅ लोक धुनॉे में बँधलोॅ ई सब गीति लोक वेद के दुख लोक सें सुख लोक में पहुँचावै छै।
विहारी जी रोॅ सांगीतिक सुर आरोॅ चरित के उजागर करतें होलोॅ निष्चय-ए ‘गीति मंजरी’ विहारी जी केॅ जीवन दै छै।
Author | वैकुण्ठ बिहारी |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-973380-0-7 |
Language | Hindi |
Pages | 96 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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