अपनी शिल्पगत विशेषताओं का मजबूती से निर्वहन करते हैं राहुल शिवाय। “एक कटोरी धूप” संग्रह के दोहों में युगानुरूप और युगानुकूल नए सन्दर्भों का निखार दर्शनीय है। लोक शब्दों और अछूते बिम्बों का मौलिक प्रयोग इन दोहों की विशेषता है। प्रकृति के सौंदर्य, नारी विमर्श, सामाजिक विसंगति और प्रेम जैसे समस्त विषयों पर लिखे गए दोहे अपनी संवेदनशीलता से प्रभावित करते हैं। इनके दोहे छंद, लय और शिल्प की नव्यता के साथ यथार्थ के धरातल पर स्वयं को स्थापित करने में समर्थ हैं।
Apani shilpagat visheShataon ka majabooti se nirvahan karate hain Rahul Shivay. “ek kaTori dhoop” sangrah ke dohon men yugaanuroop aur yugaanukool nae sandarbhon ka nikhaar darshaneey hai. Lok shabdon aur achhoote bimbon ka maulik prayog in dohon ki visheSata hai. PrakRiti ke saundary, naari vimarsh, saamaajik visangati aur prem jaise samast viSayon par likhe gae dohe apani sanvedanasheelata se prabhaavit karate hain. Inake dohe chhand, lay aur shilp ki navyata ke saath yathaarth ke dharaatal par svayan ko sthaapit karane men samarth hain.
Prabhu Trivedi –
छांदसिक अनुशासन की धूप में सेंके हुए, अर्थ की गंभीरता से परिपूर्ण और भाषायी शुद्धता से सज्जित दोहा संग्रह ‘एक कटोरी धूप’ है।
दोहा हिंदी का एक ऐसा सशक्त, सार्थक और संक्षिप्त छंद है, जिसे दृष्टांत के रूप में उपयोग में लाया जाता रहा है। हमारे पूर्ववर्ती रचनाकारों में तुलसी, कबीर, रहीम, बिहारी, दादू आदि ने इसे अमरता प्रदान की है। यह लोक में बहु-प्रचलित और बहु-श्रुत छंद है। श्री राहुल ने सामाजिक विषमताओं, भौतिक चकाचौंध और भ्रष्ट राजनीति के माध्यम से अनेक दोहे रचे हैं। विषय-वैविध्य उनके दोहों की विशेषता है। इन दोहों को समाज और साहित्य का युगानुरूप मिलन-स्थल भी कह सकते हैं।
प्रभु त्रिवेदी
सम्पर्क: 8447540078
Sunil Singh –
‘एक कटोरा धूप’: वस्तुत: यह एक दोहा संग्रह है. यह हिन्दी की एक ऐसी विधा है जिसमें तुलसी, कबीर, रहीम, बिहारी जैसे अनेक कवियों ने अपनी पूरी रचना को इसी मे व्यक्त किया है. यह हमारी परम्परा है. हालांकि परम्परा एक सामंती चीज है. परम्परा को अनुकरण करने में सावधानी बरतनी चाहिए. इसमें कुछ सार्थक तत्व भी होते हैं और कुछ निरर्थक भी हैं.लेकिन हिन्दी के इस विधा के द्वारा इन कवियों ने समाज को जागृत करने का काम किया है. पिछले दिनों यह विधा अत्यन्त लोकप्रिय हुई है. राहुल शिवाय तो जैसे लगता इसके मंजे खिलाड़ी हैं. इस दोहा संग्रह में वह सबसे पहले अपने गुरूओं को याद करते है:
नए अंकुरित बीज को, गुरूवर देते खाद|
जीवन भर भूलें नहीं, उन गुरूओं की याद||
एक पुरानी शैली में वर्तमान की वास्तविकताओं की अभिव्यक्ति बहुत अच्छा लगता है और मारक भी. आखिर इन दोहों में क्या है?वही बाजारवाद के काले बादल के फलस्वरूप जो हमारे समय में विसंगतियां आयी है उनका चित्रण लाजबाब है. धर्मान्धता पर जोरदार हमला है.
वेद नहीं मैंने पढ़े, तुमने नहीं कुरान|
फिर दोनों ने लिये, बांट खुदा-भगवान|
किसानों की हालात पर कवि लिखते हैं:
प्रेमचंद आ देखिए, कैसे हैं हालात|
अब तक कम्बल के बिना, कटे पूस की रात||
आज देश की क्या हालत है दोहे की इन पंक्तियों को देखिये:
बेकारी, दंगे, हवस, भूख, गरीबी, पीर|
एक युवक ने देश की, खींची ये तस्वीर||
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जगत खोजती रह गई, पीड़ा, भूख, गुहार|
विज्ञापन ने इस तरह, हथियाया अखवार||
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जनप्रतिनिधियों का हुआ, कैसा अब किरदार|
यह संसद का सत्र है, या मछली बाजार ||