दोहे के सिरमौर (Dohe Ke Sirmaur / Edi. Ashok Anjum)

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प्रस्तुत संकलन में 18 दिसंबर 1919 को जन्मे चिरंजीत (पद्मश्री) से लेकर 1 मार्च 1993 के युवा दोहाकार राहुल शिवाय तक की दोहा-यात्रा है। पुस्तक में मैंने वे दोहाकार रखे हैं, जिनकी आधुनिक दोहे की शिराओं में नए रक्त, नई ऊर्जा का संचार करने में बड़ी भूमिका रही है। जिनके स्वयं के दोहा-संग्रह तो प्रकाशित होकर चर्चित हुए ही हैं, इसी के साथ संकलित अनेक दोहाकारों ने तरह-तरह से दोहे की समृद्धि में अपना योगदान दिया है। इन्होंने विभिन्न पत्रिकाओं के दोहा-विशेषांक संपादित किए हैं, दोहे के समवेत संकलन निकाले हैं और दोहे पर केन्द्रित कार्यक्रम आयोजित करके उसके आधुनिकता बोध को लोगों के सामने लाए हैं। ऐसे दोहाकारों में विशेष रूप से देवेंद्र शर्मा इंद्र, हरेराम समीप, राजेंद्र वर्मा, डॉ. महेश दिवाकर के साथ इनके बाद की पीढ़ी के रघुविंद्र यादव और नवयुवाओं में राहुल शिवाय और गरिमा सक्सेना का नाम लेना चाहूँगा, जिन्होंने दोहे को आज की गरिमामयी स्थिति तक पहुँचाने में अपना महती योगदान दिया है।

-अशोक अंजुम

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