डॉ. अमर पंकज के पहले ग़ज़ल संग्रह ‘धूप का रंग आज काला है’ का शीर्षक ही इस बात को इंगित करता है कि आज समाज में ऐसा बहुत कुछ घटित हो रहा है जो समाज के हित में नहीं है और जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। ऐसी विषम परिस्थिति में एक सच्चे रचनाकार का समाज के प्रति दायित्व है कि वह उन परिस्थितियों के विरूद्ध आवाज़ उठाए और उनका प्रतिरोध करे। डॉ. अमर पंकज का ग़ज़लकार अपने इस साहित्यिक दायित्व का बड़ी निष्ठा के साथ निर्वाह करता नज़र आता है।
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