देख समय का फेर / रघुविन्द्र यादव

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यह युग विसंगति का युग है, अतः युगबोध आज की कविता का मुख्य स्वर है, वह चाहे जिस विधा की हो, लेकिन छंदोबद्ध कविता, विशेषतः दोहे में उसका रूप एकदम अलग दिखता है। यह विधा लोक से गहरे जुड़ी है। कबीर, रहीम आदि के दोहे अपनी त्वरा के चलते कई सदियों के बाद भी जन-मानस में अपनी जगह बनाए हुए हैं। यह इस विधा की भाषिक और छांदसिक विशेषता है। रघुविन्द्र जी के अनेक दोहे इसी प्रकार के हैं, वे बेशक़ पाठकों की जुबान पर चढ़ेंगे। ये चाहे अभिधा में हो, अथवा व्यंजना में, उनकी भावविह्वलता, सहज बिम्ब-प्रतीक योजना उन्हें मार्मिक और ग्राह्य बना देती है। सहज-सरल अर्थबोध और जनसरोकार उनके दोहों की पहचान है। आम पाठक से वे इसलिए तुरंत तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। युगबोध, प्रकृति-सौंदर्य, सूक्तिपरकता आदि को लेकर उन्होंने दृष्टांत और उदाहरण अलंकार के सुंदर दोहे रचे हैं।

Author

रघुविन्द्र यादव

Format

Paperback

ISBN

978-93-49136-54-0

Language

Hindi

Pages

112

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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