दीवान में जहाँ ग़ज़लों की रदीफ़ों को हरूफ़े तहजी के लिहाज़ से तरतीब देना ज़रूरी है वहीं ग़ज़लों में तग़ज्जुल क़ायम रखना भी ज़रूरी है। जिस ग़ज़ल की जो भी रदीफ हो उसे क़ाफ़ियों की मुनासबत से बरतना और फिर उसमें मआनी का हुस्न पैदा करना एक शायर या शायरा के लिए बहुत ज़रूरी होता है वरना दीवान अपनी अहमियत खो देगा, और मुझे कह लेने दीजिए कि मधु मधुमन साहिबा ने दीवान के उन लोआज़मात से अपनी ग़ज़लों को हम रकाब किया है। मधुमन साहिबा के दीवान में जो शायरी है वो देवनागरी लिपि में है, इस में बेशुमार अच्छी-अच्छी ग़ज़लें हैं जो शायरा की दिली कैफ़ियात की भरपूर नुमाइंदगी करती हैं।
जिस तरह परवीन शाकिर ने अपनी ग़ज़लों में नसाई मसाइल पेश किए हैं, और जिस तरह मर्दाना समाज पर तंज किया है, वैसे ही मुआमलात की तर्जुमानी मधुमन साहिबा ने भी अपनी ग़ज़लों में की है।
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दीवान-ए-मधुमन (Deewan-E-Madhuman / Madhu ‘Madhuman’)
Original price was: ₹999.00.₹799.00Current price is: ₹799.00.
Author | Madhu 'Madhuman' |
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Format | Hardcover |
Language | Hindi |
Pages | 416 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
ISBN | 978-81-980249-9-2 |
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