यह रेखांकित करने योग्य है कि वरिष्ठ साहित्यकार और यशस्वी संपादक शिवनारायण जी ने पिछले कुछ वर्षों में सतत ग़ज़लें कही हैं और उसके प्रचार प्रसार के लिए हर स्तर पर प्रयास किये हैं। उन्होंने अपने तीसरे ग़ज़ल संग्रह ‘चलेंगे दूर तक’ में विस्तृत अनुभवों और सुदीर्घ चिंतन को इस कौशल से प्रस्तुत किया है कि ये ग़ज़लें वर्तमान के विभिन्न मानवीय संदर्भों को न केवल चिन्हित करती हैं वरन उनके मर्म की विशिष्ट अभिव्यक्ति भी बन गई हैं। ये ग़ज़लें आम जन की मनःस्थिति के केंद्र में व्याप्त हाहाकार और क्लेश को साहित्य की सकारात्मक चेतना से जोड़ कर उदासीन सत्ताओं को मनुष्यता की ओर प्रवृत करती हैं। यहाँ जीवन की जटिलताओं और मानव मन की सूक्ष्म अनुभूतियों को सरल शब्दों के बाने में देखना सुखद लगता है। इन गजलों में शब्द आपसी नाटकीय कलाबाजियों के आडंबर से परे रहकर कथ्य की मूल संवेदनाओं को साधते हुए हैं। यहाँ मनुष्य और कला के अंतर्संबंधों की महाकाव्यात्मकता को दो-दो पंक्तियों के स्पेस में ढला हुआ देखा जा सकता है। सुचिंतित विचार और संश्लेषित अनुभूतियों को शब्दों के संयमित प्रवाह से जन मानस का हिस्सा बना देने में सक्षम ये ग़ज़लें स्वयं अपने रचनाकार के सृजन सामर्थ्य का प्रमाण हैं।
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