रूपम झा नयी पीढ़ी के ऐसे ही समकालीन गीतकारों में से एक है, जिसके पास क्रांति की मशाल है तो घसगढ़नी की कचिये की धार भी। इनके गीत सामाजिक यथास्थिति के साथ हिंसक मुठभेड़ ही नहीं करते, न ही यह सिर्फ जन-आंदोलन और जन-प्रतिरोध की चेतना का ही अलंबरदार है, बल्कि इनमें स्वस्थ और स्वभाविक चिंतन और युगबोध भी है। समय और समाज में आये परिवर्तन के अनुरूप ही इनके गीतों में पूर्ववतीं गीतकारों से थोडी भिन्नता और व्यापकता है। इनमें सिर्फ संघर्ष की इच्छा भर नहीं है बल्कि जीत की घोषणा का विश्वासी चरित्र है। इसको शिद्दत के साथ समझने और महसूस करने की आवश्यकता है। यथा- “ये ठाना है हमने लड़ेंगे सुबह तक नहीं जीत पायेगा हमसे अंधेरा बहुत जानते सूर्य के न्याय को भी उजालों के हर एक अध्याय को भी मशाले बनेंगे, जलेंगे युगों तक गढ़ेंगे नया एक अपना सवेरा।”
– नचिकेता
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