19वीं शताब्दी में हुए मुंडा विद्रोह ने विश्व के कई भागों में आदिवासी और पिछड़ी जातियों के बीच चल रहे आन्दोलनों के लिए पथप्रदर्शक बना। यह आन्दोलन जनजातीय समुदाय द्वारा औपनिवेशिक व्यवस्था के विरुद्ध छेड़ें गए संघर्ष के रुप में देखा जा सकता है। ईसाई धर्म के बढ़ते प्रभाव के बीच अपनी संस्कृति की रक्षा करने की गाथा है। ऐसे आन्दोलन ही अपने लोगों के लिए एक नए स्वर्णिम युग की परिकल्पना है।
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