भक्ति-ज्ञान निर्झर (Bhakti-Gyan Nirjhar / Brij Kishore Srivastava)

399.00

Minus Quantity- Plus Quantity+
Buy Now
Category: Tag:

जीवन का लक्ष्य स्वर्ग प्राप्त करना नहीं है, न ही देवत्व या मोक्ष प्राप्त करना। ये सब तो कर्म-बंधनों से जुड़े परिणाम हैं। जीवन का लक्ष्य तो अपने संचित प्रारब्धों को समाप्त करना और नए प्रारब्धों का संचय न करना है। पर यह किया कैसे जाए? क्या ज्ञान मार्ग इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त है? अथवा कर्म किंवा भक्ति? शास्त्रों का सर्व सम्मत मत है कि भक्ति मार्ग अथवा भक्तियोग ईश्वर को पाने का इन सबमें सरल उपाय है। भक्तियोग से भी सुगम उपाय शरणागति है। पुन: भक्ति या शरणागति किस की और कैसे की जाए? और यदि हमारा स्वभाव ज्ञानयोग या कर्मयोग के लिए प्रेरित करता है तो वह भी कैसे किए जायँ? ब्रह्म क्या है? क्या ब्रह्मा-विष्णु-महेश ही ब्रह्म-ईश्वर हैं? या अन्य कोई? ब्रह्म यदि निराकार-निर्गुण है तो ज्ञान-कर्म-भक्ति के लिए उसका आभास कैसे हो? और यदि साकार-सगुण है तो फिर वह अनंत, आदि-अंत रहित कैसे? श्रुति (वेद)-स्मृति-इतिहास-पुराण किन ग्रंथों से हमारा मार्ग दर्शन होगा? इनका भेद क्या है? संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद्, वेदांग क्या हैं? हमें कैसे पता चलेगा कि हम भक्ति मार्ग पर चल रहे हैं या नहीं? हम जिनसे मिल रहे हैं वे भक्त हैं, शरणागत हैं, भगवान हैं, सुर हैं, असुर हैं अथवा देवता, रूद्र, यक्ष, गंधर्व, दैत्य, दानव, राक्षस, अप्सरा हैं या अन्य कोई? और फिर सृष्टि में इतनी विविधिता उत्पन्न किससे हुई?
ऐसी ही जिज्ञासाओं के शास्त्र-सम्मत उत्तर ढूँढने के लिए पढ़िए ‘भक्ति ज्ञान निर्झर’।
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मामृतं गमय।

Shopping Cart