बल्लो (Ballo / Dr. Rajendra Prasad)

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बल्लो उपन्यास में उपन्यास लेखन के छहों तत्व मौजूद हैं। यथार्थ विषय जाति प्रथा पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का लेखन कथावस्तु को पुष्ट करता है। फूलबाबू, बासो भैंसवार, बोथी साह, बलेशरा, विशुनदेव, रामखेलावन साह, फुलकुमारी, राजू, महावीर मिसर, महेशरा, गौरीशंकर जैसे पात्रों के द्वारा घटनाओं को मोड़ देने में उपन्यासकार सफल हुए हैं। पात्रों का चरित्र चित्रण करने में भी डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद कुशल हैं। कथोपकथन का सुन्दर, सुगठित प्रयोग उपन्यासकार को विशिष्ट बनाता है। देशकाल-परिस्थिति की बात करें तो जातिप्रथा की विद्रूपताओं को विखंडित करके अन्तर्जातीय विवाह को बढ़ावा देने के इस वर्तमान माहौल में बल्लो उपन्यास एक मील का पत्थर सिद्ध होने वाला है। भाषा एकदम सरस, सरल और पात्रानुकूल है। जैसा पात्र वैसी भाषा एकदम आंचलिक शब्दों का प्रयोग, जिसमें मुहावरे और कहावतों का तड़का है, जो बरबस फणीश्वरनाथ रेणु की याद दिलाने में समर्थ है। उपन्यास का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट और सुग्राह्य है। जातिप्रथा, जिससे सभी उकता चुके हैं। आए दिन जातिप्रथा को तोड़ने के लिए हमारी पीढ़ियाँ तत्पर रहती हैं। उसी कड़ी में भिन्न-भिन्न जाति के फुलकारी और राजू विवाह बन्धन में बँधकर जो संदेश देते हैं, उससे उपन्यासकार अपने उद्देश्य में सफल हो जाता है।
जहाँ तक शैली की बात है तो ‘बल्लो’ उपन्यास में कथात्मक शैली को अपनाकर उपन्यासकार अपने उपन्यास लेखन में सफल हुआ है पर कहीं-कहीं पात्र शैली का उदाहरण भी मौजूद है। पात्रशैली से गुज़रते हुए पाठकों को बहुत हँसी आएगी। पढ़ते-पढ़ते ही पाठक हँसते-हँसते लोट-पोट हो जाएँगे। उपन्यासकार को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ। जय साहित्य।

— कैलाश झा किंकर

Author

डॉ. राजेंद्र प्रसाद

Format

Paperback

ISBN

978-93-91081-10-2

Language

Hindi

Pages

284

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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