बिहार प्रदेश में जन्में और सुदूर दक्षिण में निवास होने की वजह से ईश्वर करुण जी की कहानियों ने कथ्य, संवेदना और भाषा शैली का एक व्यापक फ़लक समेटा है। उनकी कहानियों के केंद्र में मानवीय संवेदना के विविधवर्णी स्वरों का सरगम समरस होकर प्रतिध्वनित हुआ है। इन कहानियों में जीवन-मूल्यों को सहेजने के साथ बदलती सामाजिक दृष्टि और संदर्भों को लेकर भी कथाकार सजग और सचेष्ट है। ईश्वर जी की ‘मुखर प्रश्न, मौन उत्तर’ तथा ‘लोग क्या कहेंगे’ जैसी कहानियाँ इसकी मिसाल हैं। ‘बिना पते की चिट्ठियाँ’, ‘नया डाकिया’, ‘एक जनम और’ तथा शीर्षक कहानी ‘…और कुरिंजी खिल उठा’ जैसी कई कहानियाँ अपनी मार्मिकता से पाठकों को भाव विभोर करने के साथ-साथ जीवन के लिए कुछ न कुछ मूल्यवान सौंपने वाली भी हैं। जीवनानुभवों की वैविध्यपूर्ण संपदा के साथ, समृद्ध भाषा-शिल्प प्रस्तुत संग्रह की कहानियों की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है।
– सूर्यबाला
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