‘ग़ज़ल’ अभिव्यक्ति का एक लोकप्रिय माध्यम है। यह काव्य की एक ऐसी सशक्त विधा बन गई है जिसमें काव्य की अन्य विधाओं की तुलना में मानवतावादी चिंतन अत्यंत प्रभावशाली ढंग से मुखरित हुआ है। ग़ज़लों में अंतर्निहित विविध प्रकार के चिंतन ही इन ग़ज़लों को अर्थवत्ता प्रदान कर इन्हें बड़ा बनाने का कार्य करते हैं। इस मायने में नीलू चौधरी के चिंतन केवल रसोईघर तक ही सिमट कर नहीं रहते हैं बल्कि यह घर की चहारदीवारी को लांघकर समाज, देश व विश्व तक की अनन्त यात्रा कर आते हैं। नीलू चौधरी का नवीनतम ग़ज़ल संग्रह ‘आसमां चाहिए’ एक मुखर स्त्री का-एक जीवंत दस्तावेज़ है। इस संग्रह में अंतर्निहित पीड़ा केवल नीलू चौधरी की पीड़ा नहीं है बल्कि इसका जुड़ाव आम आदमी से है। इनके कतिपय शेरों से गुजरते हुए ऐसा लगता है जैसे सदियों से पददलित, पदमार्जित व शोषित वर्ग इन शेरों में ख़ुद उतर कर अपनी व्यथा-कथा ख़ुद ही कह जाते हैं। अपने अद्भुत कहन क्षमता के द्वारा वर्तमान परिदृश्य को अपने शेरों में पिरो देना इनकी एक ख़ास ख़ासियत है। नये-नये बिम्बों व प्रतीकों के माध्यम से मानव जीवन की तमाम विसंगतियों को उजागर करने की कला से नीलू जी बखूबी परिचित हैं।
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