है छिपा सूरज कहाँ पर ( Hai Chipa Suraj Kaha Par/Garima Saxena )

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‘है छिपा सूरज कहाँ पर’ युवा नवगीतकार गरिमा सक्सेना का प्रथम नवगीत संग्रह है जिसे ‘उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान’ द्वारा बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार तथा ‘हिन्दुस्तानी अकादमी इलाहाबाद’ द्वारा युवा कविता सम्मान से सम्मानित किया गया है।
गरिमा सक्सेना समकाल के उन महिला गीतकारों में से एक हैं जिनके गीतों में अप्रतिम धार दिखायी देती है। उनके सामने समय की खुली किताब है जिसका अक्षर-अक्षर वे पढ़ती हैं और शब्दों के संस्कार से संस्कारित करती हैं। उनकी अभिव्यक्ति पर कोई अनापेक्षित दबाव नहीं है। उनका रचना संसार इतना विस्तृत और पूरी पृथ्वी की प्रकृति के साथ जनजीवन से संपृक्त होकर अपने होने का प्रमाण देता है। उन्होंने विपन्न वर्ग को किसी राजनीतिक दबाव के कारण नहीं अपितु संघर्षशील श्रमजीवी वर्ग के प्रति सहज संपृक्ति और जीवन-यथार्थ से लगाव के कारण ही अपने गीतों की अंतर्वस्तु बनाया है। उनके गीत रचनात्मक आत्मसंघर्ष के गीत हैं।

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