ग़ज़ल के तीन सोपान ( Gazal Ke Tin Sopan / Sonia Verma )

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शुरुआत से अब तक देखें तो ग़ज़ल ने हिंदी ग़ज़ल से समकालीन ग़ज़ल बनने तक एक लम्बी यात्रा तय की है। ग़ज़ल की विषय-वस्तु और कहन में भी बहुत अंतर दिखता है। बहुत-सी पुस्तकें पढ़ने के बाद यह विचार आया कि क्यों न इस बदलाव पर ठहरकर सोचा जाए। अलग-अलग काल के तीन समकालीन ग़ज़लकारों को लेकर उनकी विशेषताओं और उनकी कहन पर बात करते हुए हिंदी ग़ज़ल के परिदृश्य में हुए बदलाव को महसूस किया जाए, जिसे एक पुस्तक का आकार दिया जाए। इसकी प्रथम कड़ी में सर्वप्रथम आदरणीय हरेराम समीप, जिनका ग़ज़ल लेखन लगभग 50 वर्षों से अधिक है। इनके बाद आदरणीय द्विजेन्द्र द्विज, जिनका ग़ज़ल लेखन लगभग 30 वर्षों से अधिक है और अंत में के. पी. अनमोल को लिया है, जिनका लेखन तक़रीबन 10 वर्षों से अधिक है। इस तरह हिंदी ग़ज़ल की तीन पीढ़ियों का यह एक अवलोकन हुआ, जो हिंदी ग़ज़ल के अलग-अलग समय के अंतराल में उसकी भिन्नताओं और समानताओं पर एक दृष्टि डालता है।

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