गीत वस्तुतः हृदय की भाषा होती है जिसमें संवेदना अर्थात हर्ष, विषाद, निवेदन, समर्पण आदि का भाव गेयता के साथ अभिव्यक्त होता है। अर्थात गीत हृदयसत्तात्मक होते हैं, और जहाँ हृदय की सत्ता हो वहां अहंकार और जड़ता की अनुगूंज हो ही नहीं सकती। रंजन कुमार झा के गीत इस तथ्य को प्रमाणित भी करते हैं। इनके गीतों में प्रेम और जीवन से जुड़ी अनुभूतियां कल्पना के सुंदर, सहज और सार्थक परिदृश्य के साथ अभिव्यक्त हुईं हैं।
geet vastutH hRiday ki bhaaSa hoti hai jisamen sanvedana arthaat harS, viSaad, nivedan, samarpaN aadi ka bhaav geyata ke saath abhivyakt hota hai. Arthaat geet hRidayasattaatmak hote hain, aur jahaan hRiday ki satta ho vahaan ahankaar aur jadata ki anugoonj ho hi naheen sakatee. Ranjan kumaar jha ke geet is tathy ko pramaaNit bhi karate hain. Inake geeton men prem aur jeevan se judi anubhootiyaan kalpana ke sundar, sahaj aur saarthak paridRishy ke saath abhivyakt hueen hain.
Satyam Bharti –
प्रेम यज्ञ की ज्वाला है
यह पुस्तक प्रेम के विविध पक्षों को उजागर करने वाली, लोकजीवन में प्रेम का यथार्थपरक मूल्य स्थापित करने वाली, मानवीय मन की स्वाभाविक प्रेमिल संवेदना को उजागर करने वाली तथा मर्यादित प्रेम की वकालत करने वाली है । इसमें संकलित गीतों की भाषा काफी सरल एवं प्रांजल है।
Binod Kumar Jha –
#मुस्कान_तुम्हीं_हो_जीवन_की
वाकई जीवन की मुस्कान रंजन सर के इस पुस्तक में छुपी है, जरूरत है तो सिर्फ इसे गुनगुनाने की इनके गीतों की माला रूपी इस पुस्तक के एक-एक मोती अनमोल और पाठक के हृदय में स्वत: जगह बनाने में समर्थ है।
हर गीत मन में प्रेम की पुष्प खिलाने वाली है, प्रेम में जीए, गुजरे दिनों की याद को ताजा कराने वाली है, हर गीत में ऐसा लगता है जैसे मन फिर से प्रेम के मिलन और विरह वाली ख्यालों में खो गया हो। हर किसी के जीवन में कोई न कोई रहता/रहती है जिसके साथ होने या मन में उसका ख्याल मात्र से ही चेहरा खिल उठता है बदन में एक असीम ऊर्जा का संचार होने लगता है। इस पुस्तक को पढ़ कर उनका ख्याल मन में न आए ये नामुमकिन है, रंजन सर के गीतों में वास्तविक प्रेम में जीने की अनुभूति होती है। इनके गीतों से लगता है ये प्रेम लिखते नहीं प्रेम जीते हैं ।
#विनोद_कुमार_झा🙏🙏💐💐
रंजन कुमार झा –
किसी भी कथा, कहानी,कविता, गीत में जब आपको अपना अक्स दिखे, आपको यह महसूस हो कि ‘कहीं ये मैं तो नहीं’ तो उस रचना की सार्थकता सिद्ध हो जाती है…..
सहज – सरल शब्दों व छंदों से आवृत यह पुस्तक पाठकों में यह भाव पैदा करने में समर्थ प्रतीत होती है। मुझे यकीन है कि आप इसे पढ़कर ‘वाह’ कहने से खुद को नहीं रोक सकेंगे।
मनीष कुमार झा –
अनुभूतियाँ जब छंद पर थिरकते शब्दों को सांसों की लय में पिरोकर धड़कनों की ताल से एकाकार हो अभिव्यक्त होती हैं,गीत बन जाती हैं।
अनुभूतियों के जगत में,भावनाओं के संसार में,एहसासों की दुनियां में जो श्रेष्ठतम,परम् और दिव्य अनुभूति है: वह प्रेम है।
प्रेम!जिसमें जिया जा सकता है।जिसे जाना जा सकता है किन्तु अंततः कहा नहीं जा सकता।प्रेम के सम्बन्ध में कहा जा सकता है लेकिन प्रेम को कहना सर्वथा दुष्कर और कठिनतम ही होता है।
प्रेम गीतों के युवराज श्री रंजन कुमार झा ने इस असाध्य को साधने का भगीरथ प्रयास किया है क्योंकि वह स्वयं प्रेममूर्ति हैं।
“मुस्कान प्रेम की भाषा है।”
और इसलिए ही प्रेमगीतों के इस अनूठे संकलन का यह सम्पूर्ण परिचय है: “मुस्कान तुम्हीं हो जीवन की”
प्रस्तुत पुस्तक में उस “तुम” से जुड़ी कवि की अनुभूतियों ने गीतों का आकार ग्रहण कर अपनी सजीव उपस्थिति दर्ज की है।
चूँकि इस संग्रह के कुछ गीतों को स्वयं कवि के सुरीले श्रीमुख से सुन कर आनंद में सराबोर होने का सौभाग्य मुझे भी मिला है सो इतना तो अवश्य ही कह सकता हूँ कि प्रेम रस सिद्ध कवि ने “मुस्कान तुम्हीं हो जीवन की” नाम के इस प्रेम ग्रन्थ में विरह के तटों के मध्य प्रणय,सौंदर्य,माधुर्य और शृंगार की सरस सरिता प्रवाहित करते हुए अपनी अनुभूतियों,भावनाओं और कल्पनाओं को ,यथार्थ के अनुभवों को शब्दाभिव्यक्ति देने में निश्चित ही सफलता पायी है।
उपर्युक्त बातें कवि और उनके इस प्रथम अनुपम ग्रंथ के प्रति सहज भावोद्गार या एक प्रशंसक की पाठकीय प्रतिक्रिया ही है।प्रेम की समीक्षा कर पाने में यह पाठक सर्वथा असक्षम है।
मेरी अनन्य शुभकामनाएं।🙏🌹
मनीष