सम्यक-सम्बोधि (Samyak-Sambodhi / Edi. Vibha Rani Shrivastava)

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लघुकथा का चरित्र आतुर होता है, पाठक को कुछ बताने के लिए। वह शब्दों या सधे वाक्यों के साथ कोई दृश्यबंद पाठक के समक्ष रखता है। ताकि चित्र की भाँति वह पाठक के मानस पर चिपक जाए। लेखक का यह सूजन ही पाठक या दर्शक को सचेत करने के लिए है। किसी भी रचना को आकार देने वाले की दृष्टि बड़ी सूक्ष्म होती है। लघुकथा के चरित्र उसकी रचनात्मक सोच को बाहर लाने के लिए कटिबद्ध रहते हैं। लेखन के माध्यम से पाठक या दर्शक को समझ देने का काम उसका है। फिर पढ़ लेने या दृश्य देख लेने के बाद, पाठक या दर्शक पर निर्भर है कि सच से सामना हो जाने के बाद उसकी प्रतिक्रिया क्या रहेगी?
दर्शक रूप में जिसे सामने देखा या पाठक रूप में जिसे पढ़ा, उसे विस्मृत करना इतना आसान नहीं। एक अच्छी लघुकथा या नुक्कड़ नाटक की यही खासियत है। यथार्थ की अभिव्यक्ति से वह कथा के अंत में प्रश्न खड़े कर सकता है। उस असभ्य परिवेश को बदल डालने के लिए आवाज दे सकता है। रचनाकार अपने लेखन अनुभवों से विसंगत धारणाओं में बदलाव लाने का कार्य कर रहा है। कथ्य यदि उद्देश्य-पूर्ण है तो पाठक उसके अर्थ निकालने में दक्ष बन सकता है। कथा यदि बातचीत तक सीमित है तो पाठक उसे पढ़कर सहज ही भुला देगा। लघुकथा यही समझ देने की शक्ति रखती है। निडर होकर यथार्थ के ताने-बाने से पाठक को जागरूक बना देने का काम लघुकथा का है। संकलन की लघुकथाएँ ऐसी ही हैं।

Author

सं. विभा रानी श्रीवास्तव

Format

Paperback

ISBN

978-93-49136-21-2

Language

Hindi

Pages

176

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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