धूप-छांँव सी ज़िन्दगी (Dhoop Chhanv Si Zindagi / Jyoti Jain ‘Jyoti’)

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‘धूप-छांँव सी ज़िन्दगी’ के दोहे व्यक्ति और समाज से गहरा जुड़ाव रखने वाले हैं। इसमें नीति का स्वर और आधुनिकता बोध दोनों है। ज्योति जैन ‘ज्योति’ जी जीवन के विविधवर्णी और व्यापक आयामों को दोहे में अभिव्यक्त करने में पूर्णत: सफल हुई हैं। अपने काव्य अनुभव से वो “इस विकास की होड़ में, मानव बना मशीन” से यात्रा करते हुए “अपने जीवन से करो, जी भर कर तुम बात” तक के निष्कर्ष तक पहुंँचती हैं। इसी तरह “गांँव में भी अब नहीं ,सच्चा हिंदुस्तान” की पीड़ा दायक अभिव्यक्ति के साथ “जब हल्कू भी पेटभर, खाये रोटी-दाल। तब समझेंगे हो गया, अपना देश निहाल।।” के समाधान तक पहुंँचने का विश्वास इनके दोहों को संपूर्णता प्रदान करता है। नारी विमर्श से लेकर गुरु भक्ति, सामाजिक चिंतन, कृषकों की दशा, प्रकृति का आनंद, पर्यावरण बोध, वृद्ध विमर्श, प्रेमिल मन की अभिव्यक्ति जैसे विभिन्न विषयों को इन्होंने अपने दोहे के केंद्र में रखा है।

Author

ज्योति जैन 'ज्योति'

Format

Paperback

ISBN

978-81-97290-88-6

Language

Hindi

Pages

104

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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