नई कविता आंदोलन के बाद हिन्दी छंद कविताओं ने अपने स्वभाव में जो परिवर्तन किया उसी के परिणामस्वरूप नवगीत और हिन्दी ग़ज़ल का वर्तमान स्वरूप हमारे सामने है। माहेश्वर तिवारी दादा उन रचनाकारों में से एक हैं जिन्होंने इस परिवर्तन को आत्मसात करते हुए छंद कविता के लिए ज़रूरी नींव को निर्मित किया है। बिम्ब और प्रतीकों के माध्यम से शब्द-चित्रों को गढ़ने वाले इस रचनाकार को वह लक्षणा और व्यंजना शक्ति प्राप्त है जो कविता को सर्वोत्कृष्ट शैल्पिक विशेषताएँ प्रदान करता है। कविता के सौंदर्य को बचाने के साथ जनधर्मिता को स्वर देने वाले माहेश्वर दादा की रचनाएँ ग़ज़लों में और तीक्ष्ण और प्रभावी हो जाती हैं। सूक्तिमयता के साथ संधान की कला को उनके ‘तेंदुआ’ रदीफ़ की ग़ज़ल में आसानी से महसूस की जा सकती है। वे ग़ज़लों में नवगीत का सौंदर्य भरने वाले अग्निधर्मा कवि के रूप में जाने जायेंगे ऐसा विश्वास है।
-राहुल शिवाय
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