निरुपमा (Nirupama/ Suryakant Tripathi ‘Nirala’)

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‘निरुपमा’ उपन्यास की कहानी निरुपमा और कृष्ण कुमार के चारों ओर ही घूमती है। 1936 में प्रकाशित यह उपन्यास भले ही कृष्णकुमार और निरुपमा के प्रेम के इर्द गिर्द लिखा गया हो लेकिन ये अपने वक़्त के समाज का दस्तावेजीकरण भी करता है। साहित्य अपने समय के समाज का प्रतिबिम्ब होता है और जब हम किसी साहित्य को पढ़ते हैं तो उस समय के समाज, उनके आचार-विचार इत्यादि से भी रूबरू होते हैं। ये उपन्यास भी उस दौर के समाज को पाठक के सम्मुख लाता है। यह उपन्यास धर्म के उन ठेकेदारों का पर्दाफ़ाश करता है, जो गरीब आदमी को तो उनके हिसाब से न चलने पर प्रताड़ित करता है, लेकिन जब अमीर आदमी वही काम करता है तो धर्म की परिभाषा बदलकर अमीरों के अनुरूप गढ़ देता है।

ISBN

978-81-970224-2-5

Format

Paperback

Author

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

Language

Hindi

Pages

104

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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