श्री राघव शुक्ल के गीतों को पढ़ने, आस्वाद लेने की पहली और जरूरी योग्यता है पाठक का भावुक होना। आध्यात्म इनका परम् बोध है तो प्रेम इनका यज्ञ। इन गीतों को लिखते हुए राघव जी की कलम अतीन्द्रिय हो गई है। वे जब प्रेम का स्वाद चखते हैं तो भोग्य नहीं आराध्य बन जाते हैं।
Author | Raghav Shukla |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-969813-0-3 |
Language | Hindi |
Pages | 112 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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