ग़ज़ल क्या है इस बात की चर्चा इतनी महत्तवपूर्ण नहीं रह गयी है क्योंकि वर्तमान में इस विधा ने जितना विस्तार पाया है, इसकी पहुँच जितनी है शायद ही किसी और की हो। आज इसके बारे में कौन नहीं जानता है? अपने शिल्पीय अनुशासन और वैशिष्ट्य के आधार पर यह काव्य विधाओं की सिरमौर बन चुकी है। लेकिन यह भी सत्य है कि आज भी कई पाठक व रचनाकार हैं, जो इसके बाहरी स्वरूप से परिचित तो हैं लेकिन वे इसकी महीन बुनावट से पूर्णतया परिचित नहीं हैं। हमें हमेशा से ऐसा लगता रहा है कि सीखने-सिखाने का सबसे अच्छा तरीका ‘अच्छा पढ़ना’ है। हम जितना पढ़ेंगे उतना ही सीखेंगे। यह सीखने की क्रिया तभी सम्पन्न होगी जब हम देश के नामचीन ग़ज़लकारों के साथ नवांकुरों को एक मंच पर लायेंगे। यहाँ नवांकुर होने का अर्थ छोटी उम्र का होना नहीं है। हम सब लोग जो ग़ज़ल की इस यात्रा में दो-चार क़दम चले हैं स्वयं को नवांकुर ही मानते हैं। यह पुस्तक पढ़ने और सीखने की इसी प्रवृत्ति का द्योतक सिद्ध होगी, विश्वास है।
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