‘बाल सतसई’ परशुराम शुक्ल की सर्वोत्तम कृति है। इसका प्रकाशन नमन प्रकाशन, नई दिल्ली से सन् 2013 में हुआ था। यह भारत की पहली ‘बाल सतसई’ है और अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं उपयोगी कृति है। इसकी उपयोगिता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि विख्यात साहित्यकार प्राध्यापक स्वामी (डॉ.) विजयानन्द ने अपने एक सहयोगी डॉ. राम बहोरी त्रिपाठी के साथ मिलकर इसकी पहली टीका की रचना की, जो बुक पब्लिकेशन, गोमती नगर, लखनऊ से ‘बाल सतसई प्रबोधिनी’ शीर्षक से सन् 2016 में प्रकाशित हुई। यह टीका बहुत लोकप्रिय हुई। इससे प्रभावित होकर डॉ. श्याम बिहारी श्रीवास्तव ने राकेश कुमार श्रीवास्तव के सहयोग से ‘बाल सतसई’ की दूसरी टीका लिखी, जो आशा प्रकाशन, आर्य नगर, कानपुर से ‘बाल सतसई मीमांसा’ शीर्षक से सन् 2019 में प्रकाशित हुई। इन दोनों टीकाओं ने ‘बाल सतसई’ की ख्याति राष्ट्रीय स्तर पर पहुँचा दी। इसका परिणाम यह हुआ देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से शोधार्थी श्री शुक्ल के पास पहुँचने लगे। श्री शुक्ल ने शोधार्थियों को पूरा सहयोग दिया। उनके सहयोग से सैफ अली ने, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्विवेदी के मार्गदर्शन में लघु शोध प्रबन्ध तैयार किया। यह ‘परशुराम शुक्ल कृत बाल सतसई का अनुशीलन’ शीर्षक से आराधना ब्रदर्स, गोविन्द नगर, कानपुर से 2021 में प्रकाशित हुआ।
‘बाल सतसई’ की चर्चा तेजी से बढ़ी और बढ़ती गई। शीघ्र ही ऋतिका सिंह ने, कलकत्ता विश्वविद्यालय से हिन्दी विभाग के डॉ. राम प्रकाश रजक के निर्देशन में एम.फिल. हेतु एक शोध प्रबन्ध तैयार किया। इसका प्रकाशन ‘बाल सतसई की उपादेयता’ शीर्षक से के.एल. पचौरी प्रकाशन, गाजियाबाद से सन् 2021 में हुआ। ‘बाल सतसई’ की ख्याति सिक्किम तक पहुँच गई। इस समय सिक्किम विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डॉ. दिनेश साहू के मार्गदर्शन में एक शोधार्थी रोशनी चौहान ‘परशुराम शुक्ल कृत बाल सतसई का वर्तमान परिदृश्य में महत्व’ विषय पर शोधकार्य कर रही है।
यह प्रसन्नता की बात है कि ‘बाल सतसई’ के 60 दोहे संत गाडगे बाबा अमरावती विश्वविद्यालय, अमरावती (महाराष्ट्र) के एम.ए. (फाइनल) के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किये गये हैं। इनसे प्रभावित होकर, इसी विश्वविद्यालय की हिन्दी विभाग की डॉ. रेखा धुराटे ने ‘डॉ. परशुराम शुक्ल कृत बाल सतसई का अनुशीलन’ विषय में पी-एच.डी. की, जो पुस्तक के रूप में आपके सामने है।
‘बाल सतसई’ बच्चों से अधिक उनके परिवार, समाज, शिक्षक और शासन-प्रशासन के लिए उपयोगी है। मुझे पूरा विश्वास है जनसामान्य ‘बाल सतसई’ और इस पर सम्पन्न शोध ग्रन्थों को अवश्य पढ़ेगा तथा अपने बच्चों का भविष्य उज्ज्वल बनाने का प्रयास करेगा।
–शारदा सुमन
प्रबंध निदेशक,
श्वेतवर्णा प्रकाशन
नयी दिल्ली
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