भारतवर्ष के मध्य युगीन नृशंस और बर्बर इतिहास को प्रलय तुल्य जानकर देश की विराट विश्व विजयिनी संस्कृति को संदर्भित कर हुईं यथार्थ के रंग और सुगन्धि का उत्सव रचाती रचनाओं को प्रसून की संज्ञा से अभिव्यक्त करने से उत्तम कोई अन्य शीर्षक इस काव्य ग्रन्थ के लिए उपयुक्त नहीं होता। पुस्तक में समाहित प्रत्येक रचना विगत समय की ज्वालाओं में तप्त होकर दमकते हेमपुष्प जैसी है। जिसका प्राप्त होना प्रत्येक पाठक का सौभाग्य होगा।
अपनी शाब्दिक प्रांजलता, अद्भुत व्यंजना शक्ति और महत दार्शनिक बोध के वरेण्य कवि आदरणीय कृष्ण आधार मिश्र का यह साहित्यिक अनुष्ठान भारत वर्ष के मध्यकाल के हृदयहीन, बर्बर, पाशविक अत्याचार के इतिहास को जिस निर्भय मुखरता से वर्तमान के छद्मपूर्ण होते धर्मांतरण, लव जिहाद, अमानुषिक हत्याओं और इस्लामी आतंकवाद का दंश झेलते विश्व जनमानस के सम्मुख रखा है उसकी कोई तुलना नहीं है। प्रणवाक्षर की भाँति ध्वनित होते शब्द उनकी अर्थान्विति और सांकेतिकता सत्य के अनेक आयामों से परिचय करवाती है और चिंतन हेतु विवश करती है कि काश समय पर ऐसा हुआ होता। दुःख का विषय है कि उस दारुण समय में कविता की अनुपस्थिति ने समाज का मार्गदर्शन नहीं किया। यही स्थिति प्रायः सामाजिक, धार्मिक चिंतकों की भी रही।
एक ओर जातीय पशुता, भयावह हिंसा और रक्त रंजित तलवारें हमें धर्म का पाठ पढ़ा रहीं थीं तो दूसरी ओर हमारे विकास क्रम ने अहिंसा को अपना प्रथम और अंतिम अभ्यास बना लिया परिणाम हमारी पवित्र संस्कृति को बलात अपवित्र किया गया। कत्ल के कीर्तिमानों पर कस्तूरी शब्दों का आवरण डाला गया पर वह दृष्टा कवि से कदापि छिप नहीं सका और हस्तामलक की भाँति अनावृत होकर सर्वथा निंदा और प्रतिकार का पात्र बनकर प्रत्येक पाठक के सम्मुख उपस्थित है।
इतिहास काव्य के इस अनुपम ग्रन्थ में आरती के प्रदर्श, भूमिका वत रचना से प्रारम्भ होकर शताब्दी का श्राप, शेड्स ऑफ डार्कनेस, संस्कारों का संकट, नाउम्मीद वर्तमान और दंगा जैसी सभी सशक्त रचनाएँ प्रत्येक पाठक को मध्यकालीन इतिहास की नृशंस प्रवृत्तियों के रक्त पथ से होकर वर्तमान की नदी-आज रचना की इन दो पंक्तियों के महाकाव्य से साक्षात कराती है जिनकी अर्थान्विति अत्यंत गहन है। हमारी सदानीरा संस्कृति की अजस्र धारा का सूखना ही कवि की चिंतना का विषय है और इस काव्य ग्रन्थ के अस्तित्व में आने का कारण भी।
इस नदी का सूखता तन
एक बिन आँसू रुदन है।
मुझे विश्वास है कि मेरे श्रद्धेय वरेण्य कवि की श्रेष्ठ रचनाएँ साहित्य की अमूल्य धरोहर होंगी और उनकी वैचारिकता उन्हें विश्व कवि की भाँति उद्भाषित करने में समर्थ होगी।
कमल ‘मानव’
294, सिंजई, शाहजहाँपुर
मो.- 943380666
Pages | 136 |
---|---|
Format | Hardcover |
Author | Krishna Adhar Mishra |
ISBN | 978-81-192313-0-0 |
Language | Hindi |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
Reviews
There are no reviews yet.