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वंदन! शुभ अभिवंदन! (Vandan! Shubh Abhivandan! / Edi. Ramesh Kanwal)

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हमारे यहाँ बहुत पहले से गणपति, सरस्वती और गुरुवन्दन की परिपाटी रही है । किसी भी कवि गोष्ठी या कवि सम्मेलन का श्रीगणेश विधिवत दीप प्रज्ज्वलित करने के उपरान्त माँ शारदे की वन्दना के साथ होता रहा है। किसी भी कवि की प्रथम परीक्षा यही मानी जाती थी कि उसने माँ शारदे की वन्दना में क्या लिखा है। नवोदितों से कार्यक्रमों में सरस्वती वन्दना करने के लिए कहा जाता था। काव्य संकलनों के आरम्भ में गुरु, गणपति, सरस्वती एवम् अन्य ईश आराधनाएँ होना सामान्य बात होती थी । परन्तु समय की लीला कुछ ऐसी रही कि अब उस बारे में टिप्पणी करना उचित नहीं लगता।

मुशायरों, नशिस्तों में पढ़ी जाने वाली हम्दो-नातों से प्रभावित होकर, ठीक मुशायरों-नशिस्तों के दरमियान अज़ान के वक़्त वाणी को विराम देने की प्रथा से अभिभूत होकर रमेश जी के मन में आया कि हम सनातन धर्मावलम्बी ऐसा क्यों नहीं कर सकते और बस वहीं से इस अद्भुत ग्रन्थ ‘वन्दन! शुभ अभिवन्दन’ का श्रीगणेश हो गया। जहाँ बहुत सारे लोग इन बातों को बातों तक ही सीमित रखते हैं वहीं रमेश जी ने उपदेश देने या वाग्विलाप करने के स्थान पर कार्य निष्पादन का मार्ग चुना। रमेश जी की यह पहल श्लाघनीय है, अनुकरणीय है। रमेश जी को पुनः-पुनः साधुवाद। सभी साथियों को सादर सप्रेम जय श्री कृष्ण।

नवीन सी. चतुर्वेदी
ब्रजग़ज़ल प्रवर्तक एवं बहुभाषी शायर
मथुरा / मुम्बई

Author

Edi. Ramesh Kanwal

ISBN

978-81-19231-46-1

Format

Paperback

Language

Hindi

Pages

296

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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