राहों में पदचिह्न नहीं थे (Rahon Mein Padchinh Nahi The / Madhukar Ashthana)

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नवता का प्रतिमान केवल भाषा और शिल्प नहीं सम्वेदना-संसार भी है। मधुकर अष्ठाना के इस संग्रह के नवगीतों का सम्वेदना-संसार बहुत व्यापक और विराट है। कहा जा सकता है कि इस संसार में, आसपास के जीवन में, सामान्य जन के जीवन में, राष्ट्र में, सम्पूर्ण विश्व में जहाँ जो घटित हो रहा है वह उनकी सम्वेदना के साँचे में ढलकर नवगीत बना है। कवि सदैव स्वाभिमानी होते हैं और “लीक छाँड़ि तीनों चलें शायर, सिंह, सपूत” की लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं। कभी किसी कवि की कही हुई उक्ति मुझे स्मरण आ रही है। उसने कहा है- “नहीं खोजते हैं निशाँ और के हम। जहाँ पग पड़े बन गयी राह अपनी।“ मधुकर जी भी इसी अवधारणा के नवगीतकार हैं।

Author

Madhukar Ashthana

Format

Paperback

ISBN

978-93-92617-621

Language

Hindi

Pages

144

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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