असल में यह उपन्यास लेखक के पिछले दो उपन्यासों (एक रंग यह भी और लक्ष्यों के पथ पर) की कड़ी से जुड़ा इसलिए है कि जिन सामाजिक, राजनीतिक प्रसंगों की कथा अधूरी थी, उसे इसमें पूर्णता मिली है।
लेखक के उपन्यास-त्रयी सर्जन शृंखला से जुड़ने पर एक में शुरुआत, दूसरे में विस्तार और इस तीसरे में उपसंहार से साक्षात्कार होता है।
अछूते और अनूठे घटनाक्रम की उपस्थिति एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण से इसको नवीन भी कहा जा सकता है।
नारी सशक्तिकरण के नाम पर जितने चर्चित उपन्यास हैं, तुलनात्मक दृष्टि से जिस यथार्थ का चित्रण इसमें हुआ है, संभवतः अछूता विषय है। इसमें अकेले मुक्ति की न खोज है और न प्रयास।
स्त्रियों की अपहरण कथाओं से हम भिज्ञ हैं। लेकिन पापी पेट के लिए कम उम्र की बेटियों को बेचने की कुप्रथा आज भी किसी न किसी रूप में कायम है। इसी का एक विकृत रूप है अबोधावस्था में ही बच्चियों को अपहृत कर संपन्न से विपन्न हो गए बिनब्याहे सयाने, उम्रदराज, विकलांग या निठल्ले नशेड़ी मर्दों के हाथों बेच देने की घृणित घटनाएँ।
इसे उद्घाटित करने से ज्यादातर बचा जाता है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण ऐसा होता है। इस समाज व्यवस्था में स्त्रियाँ सिर्फ माल हैं, उपभोक्ताओं के लिए ही वह इस धराधाम पर आई हैं।
इन्हीं विभिन्न सामाजिक विसंगतियों के झंझावातों से जूझता यह उपन्यास रोचक शैली में प्रेरक कथा को आईने की तरह सामने ले आता है।
उपन्यास की नायिका माधवी प्रेम के मर्म, भ्रम और मकड़जाल से परिचित कराकर सावधान करती हुई विद्रोहाग्नि भी प्रज्वलित कर देती है।
वह भी अकेले नहीं।
राजेंद्र राजन लिखित यह उपन्यास निश्चित रूप से पठनीय है।
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माधवी सम प्रिय नहीं कोऊ (Madhavi Sam Priy Nahi Kou / Rajendra Rajan)
Original price was: ₹425.00.₹325.00Current price is: ₹325.00.
Author | Rajendra Rajan |
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Format | Hardcover |
ISBN | 978-81-962317-5-0 |
Language | Hindi |
Pages | 172 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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