कवि की भाव और भावना का अनुपम संग्रह है- ‘मधुर गीत गोविन्द’। इन गीतों को कमनीयता, गेयता और संगीतात्मक की त्रिवेणी चतुर्दिक प्रवाहित होती हुई हृदय की अतल गहराइयों में प्रवेश कर जाती है। लहरियों और तब हृदय इस आनन्द की लहरियों का रसा स्वादन करता हुआ पूरी तरह से आप्लावित हो जाता है। इस माध्यम से कवि ने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय तो दिया ही है, साथ ही अपने आचार्यत्व को भी प्रस्तुत करके इसका भान करा दिया है कि प्रतिभा किसी की एकान्त विरासत नहीं है। इस संग्रह का सच्चा पाठक वही हो सकता है, जिसके हृदय में प्रकृति के प्रति मानवीय संवेदना उसके मन-प्रदेश में पूरी तरह से भरी हुई हो, वास्तविक प्रेम की पवित्रता से अवगत हो। काम वासना से सम्पृक्त प्रेम के आचरण से दूर रहने वाला हो, उसका मन ईश्वरो मुख हो, राधा और कृष्ण से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के इनके गीत इसी भाव के अनुरूप प्रेम की गवाही देते प्रतीत होते हैं।
-डॉ. रामनरेश दूबे
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