खेती खेड़ो हरिनाम की (Kheti Khedo Harinaam Ki / Kunwar Udaysingh Anuj )

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भूमंडलीकरण के इस दौर में जब धर्म और भक्ति भी वित्त-लोभ और लालसा से अतिक्रमित चुकी है; यह पुस्तक हमें संत सिंगाजी के उन भक्ति-वचनों की ओर ले जाती है जो ईश्वर के प्रति आस्था को भक्ति की परिधि से खींचकर अध्यात्म के केंद्र की ओर ले जाने के समर्पण-भाव से लिखे गए हैं।
संत सिंगाजी निमाड़ के पहले संपूर्ण संत कवि हैं। वे पहले संत कवि हैं जिनकी काव्यात्मकता में श्रम के प्रतीकों में भक्ति का आदर्श व्याख्यायित हुआ था। संत सिंगाजी मनुष्य जीवन के विविध आगत संकट की आहट को सुन रहे थे। इसी कारण उन्होंने मानवीय संवेदनाओं और करुणा को भक्ति के अंतिम छोर पर ले जाकर अध्यात्म में रूपांतरित किया। यह पुस्तक इसी रूपांतरण की काव्य-व्याख्या है।
कबीर की मृत्यु के एक वर्ष बाद संत सिंगाजी का जन्म हुआ। दरअसल यह जन्म एक व्यक्ति का नहीं बल्कि कबीर की उस निर्गुण धारा को आगे बढ़ाने वाली शाखा का था जिसने निमाड़ की तात्कालिक लोक-भाषा में भक्ति के दर्शन को विस्तारित किया। यह पुस्तक निमाड़ की लोक-भाषा के महान संत कवि सिंगाजी के भक्ति दर्शन को हिंदी पाठकों तक सहज-सुलभ कराने का एक महत् श्रम और काव्य-कार्य है।

भालचंद्र जोशी

ISBN

978-81-973811-6-4

Author

कुँअर उदयसिंह 'अनुज'

Pages

176

Language

Hindi

Publisher

Shwetwarna Prakashan

Format

Paperback

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