विकास ने कम समय में अपने लिए एक ख़ास जगह ग़ज़लों की दुनिया में बना ली है। इनकी ग़ज़लों में नये समय को व्यक्त करने की बेचैनी दिखाई देती है, जो बहुत मूल्यवान है। एक तरफ़ विकास की ग़ज़लों में बदलते सामाजिक परिवेश, आर्थिक, राजनैतिक और पारिवारिक दृश्यों की अभिव्यक्ति है वहीं दूसरी तरफ़ जनचेतना के स्वर और संबंधों की बुनावट भी है। वर्तमान समय की विडंबनाएँ मुखर होकर बोलती हैं इनकी ग़ज़लों में। इनकी ग़ज़लों की भाषा सरल है। इनका मूल्यांकन सागर-मंथन जैसा है।
-सोनिया वर्मा
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