गोविंद अनुज हृदय सत्ता के गीतकार हैं। इनके गीतों में भारतीय संस्कृति और मानुषी आस्था के दर्शन सहजता से हो जाते हैं इनमें प्रेमिल जीवन के विभिन्न आयाम, गृहस्थ जीवन के उतार-चढ़ाव, विभिन्न मनोदशाओं का विप्रलम्भ स्वर, उत्सवधर्मिता के साथ-साथ विसंगतियों विद्रूपताओं एवं मानवीय मूल्यों के प्रति सामाजिक उपेक्षा का अत्यंत सजीव चित्रण है।
समस्याओं को इंगित करते इनके गीत प्रतिरोध का सम्यक स्वर हमारे सामने प्रस्तुत हुए हैं। इस स्वर की अपनी विशेषता यह है कि इनका विरोध अंधविरोध में तब्दील नहीं हुआ है। निराशात्मक व्यवस्था से जूझते हुए भी आशातीत रहना इनके गीतों को आस्थावान बनाता है। इन गीतों में छंदानुशासन से अधिक भावगत प्रभाव हमें प्रभावित करता है। एक सुयोग्य और संवेदनशील कवि की योग्यता को प्रमाणित करते ये गीत सारगर्भित, सोद्देश्य और सम्प्रेषणीय हैं। इनमें भावों की सघनता और कथ्य की सरलता है जहाँ सहमी हुई सदी प्रश्नचिह्नों से घिरी है तथा तकलीफों की गठरी बाँधे बोझिल संध्याएँ हर चुनाव के बाद ठगा हुआ महसूस करती हैं। यहाँ नरपिशाची कोरोना का भय है तो महुआ की गंध, बिटिया की मांग, अम्मा-बापू का आशीष और प्रेम में चंदन और पानी के घुल जाने का भाव बोध भी।
समग्रत: ये कहना सही होगा कि इन नवगीतों में समय है और परिवेश है और उसके साथ समयानुकूल संवाद भी।
– राहुल शिवाय
Author | Govind Anuj |
---|---|
Format | Paperback |
ISBN | 978-81-19590-31-5 |
Language | Hindi |
Pages | 136 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
Reviews
There are no reviews yet.