“तुम अनुबंध निभाना” कवयित्री ‘श्वेता राय’ का पहला गीत संग्रह है। इन गीतों में निश्छल मन की अभिलाषाएं और कुछ शिकायतें है तो वहीं कुछ उम्मीदें भी हैं। उनके गीत दुनिया को देखने के लिए एक प्रेमिल दृष्टि प्रदान करते हैं, इसलिए पाठक श्वेता जी के गीतों से स्वतः जुड़ जाते हैं।
“Tum Anubandh Nibhaanaa” kavayitri ‘ShWeta rai’ ka pahala geet sangrah hai. In geeton men nishchhal man ki abhilaaSaaen aur kuchh shikaayaten hai to vaheen kuchh ummeeden bhi hain. Unake geet duniya ko dekhane ke lie ek premil dRiSTi pradaan karate hain, isalie paaThak shveta ji ke geeton se svatH juD jaate hain.
शालिनी सिंह –
सखी किताब मिल गई है पर फेसबुक पर नहीं डाल रहे क्योंकि फिर लाइन लग जानी है सबकी लेने के लिए तुम इतना समझ लेना जो अनुबंध हमारे बीच है वो बहुत करीबी है एक क्षेत्र के जो हैं हम खूब प्यार यूं ही लिखती रहो अपना प्यार बिखेरती रहो
मनीष मोहन (verified owner) –
यह निर्णय करना बहुत ही कठिन होगा कि श्वेता राय गद्य में अधिक निपुण हैं या पद्य में ज्यादा प्रभावी हैं. बहुत आश्चर्य इसलिए भी होता है कि लगभग समान पाठ्यक्रम और शिक्षा के चलते भी कब उन्होंने साहित्य में इतनी पूर्णता प्राप्त कर ली. उनका असीमित शब्द भंडार और मानवीय भावों की उनकी सूक्ष्म समझ विस्मयकारी है. छंद विधा की तो वे जैसे महारानी हैं.
पुनः कहता हूँ कि बच्चनजी की परम्परा की वे अधिकारी प्रतिनिधि हैं।
किसी वैयाकरण के लिए इतनी भावपूर्ण रचनाएँ कैसे सुलभ हो पाई इसका रहस्य कभी उन्हें बताना चाहिए.
उनकी रचनाएँ पर्याप्त विलम्ब से प्रकाशित हुई हैं। काश यह पुस्तक प्रेम को जीने के दिनों में मिल पाती। प्रेम को अभिव्यक्ति के लिए कम ऊर्जा लगती, सफलता की संभावनाएँ भी बढ़ जाती।
श्वेता राय का अपना वृहद पाठक वर्ग है जो उन्होंने बड़े श्रम से तैयार किया है, उन्हें किसी प्रमोशन-विमोचन या संस्तुति की आवश्यकता नहीं है. कवयित्री का काव्य संग्रह ‘तुम अनुबंध निभाना’ प्रेम के पाठ्यक्रम में स्थाई जगह बनाये इसके लिए शुभेच्छाएँ।
इस संक्षिप्त प्रस्तुति के पश्चात उनका उत्तरदायित्व और भी बढ़ जाता है कि गद्य की उनकी रचनाएँ ‘अकेलेपन का राग’ और ‘कोलाहल का रागबोध’ भी शीघ्र ही इस शृंखला को आगे बढ़ाये, कविताओं के बड़े संग्रह तो उन्हें प्रकाशित करने ही हैं।
राखी सिंह (verified owner) –
श्वेता हमारे समय की सबसे अलहदा कवि हैं।उनकी शैली,उनकी भाषा,उनकी प्रस्तुति और उनका माधुर्य उन्हें समकालीन कवियों से उत्कृष्ट बनाता है।व्यंग्य के साथ हर विषय पर उनकी पकड़ उतनी ही पैनी है।पर बात जब प्रेम की हो तो श्वेता के गीत अति शुष्क पाठक को भी ओतप्रोत करने का हुनर रखते हैं।इस संग्रह में चयनित सभी कविताएं अपने माधुर्य से पुलकित करते हैं।इन्हें पढ़ते हुए पाठक मन इन गीतों के प्रेम में पड़े बिना नही रह सकता।उनकी प्रशंसा में कहे गए शब्द छोटे प्रतीत होते हैं।मेरी भावनाएं बारम्बार अपनी प्रिय कवयित्री को उन्ही के शब्द अर्पित करती हैं :
मन्दिर की हो दीपशिखा तुम
रात हो तुम दीपों वाली
भोर सुरमई तुमको छूकर
नवकलिका बन है खिलती
मन को जो हर्षित करती वो
तुलसी तुम हो आंगन की
🌹❤️