ताकि साहित्य चलता रहे / डॉ. सुरेन्द्र विक्रम

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ताकि साहित्य चलता रहे’ प्रो. सुरेंद्र विक्रम की नवीनतम कृति है जिसमें वे अपने इन्हीं विषयों, विमर्शों और कृति लेखक व्यक्तित्वों के बहाने एक सुधी समीक्षक विवेचक की भूमिका में प्रस्तुत हुए हैं। इसे इन्होंने तीन खंडों में विभक्त कर प्रस्तुत किया है मेरा चिंतन, बाल साहित्य एवं टीका टिप्पणी। कहना न होगा कि पिछले चार दशकों से वे बाल साहित्य के साथ-साथ भाषा संबंधी गोष्ठियों में भी शिरकत करते रहे हैं। पहले खंड में यही भाषा चिंतन उन्हें हिंदी की वैश्विकता से जोड़ता है। हिंदी शिक्षण से जुड़े होने के कारण मानक हिंदी की बात उठाने में वे अग्रसर रहे हैं। प्रेमचंद और इलाचंद जोशी दो विरुद्धों के सामंजस्य वाले कथाकारों पर यहाँ आलेख हैं जो कि उनके कथालोचना की व्याप्ति की ओर इंगित करते हैं। बाल साहित्य की अब तक दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिखने वाले सुरेंद्र विक्रम ने यहाँ आजादी के अमृत महोत्सव से जोड़ कर बाल साहित्य की विवेचना तो की ही है, बाल नाटक, बाल साहित्य की प्रासंगिकता, बाल साहित्य की समझ और भारतेंदु युगीन बाल पत्रकारिता का विशद विश्लेषण भी किया है।

Author

डॉ. सुरेंद्र विक्रम

Format

Hardcover

ISBN

978-93-90135-58-5

Language

Hindi

Pages

176

Genre

आलोचना

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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