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सुनो मनोरमा (Suno Manorama / Dr. Ajit)

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सुनो मनोरमा ब्रह्मांड की उन उपेक्षित नायिकाओं के लिए कुछ कह रहा है जो सदियों से कुछ सुनने की प्रतीक्षा में अपने मन के एकांत गहन निविड़ वनों में नवदेवियों सी कान लगाए बैठी थीं। इसे एक बार पढ़कर ही आप भूल नहीं सकेंगे। इसका पुनर्पाठ आपको हर बार नए कलेवर और लेखक की नई कल्पना से अवगत करायेगा। इनका स्वांत: सुखाय हर पाठक का स्वांत: सुखाय बनने की काबिलियत रखता है।

Suno Manorama brahmaanD ki un upekSit naayikaaon ke lie kuchh kah raha hai jo sadiyon se kuchh sunane ki prateekSa men apane man ke ekaant gahan niviD vanon men navadeviyon si kaan lagaae baiThi theen. Ise ek baar paDhkar hi aap bhool naheen sakenge. Isaka punarpaaTh aapako har baar nae kalevar aur lekhak ki nai kalpana se avagat karaayegaa. Inaka svaant: sukhaay har paaThak ka svaant: sukhaay banane ki kaabiliyat rakhata hai.

Author

डॉ. अजित सिंह तोमर

Format

Paperback

Pages

144

ISBN

978-81-9455-900-9

Language

Hindi

Publisher

Shwetwarna Prakashan

2 reviews for सुनो मनोरमा (Suno Manorama / Dr. Ajit)

  1. सुषमा गुप्ता

    ‘सबसे गहरी चोटें छिपाकर रखने के लिए शापित होती हैं। सबसे गहरे मलाल उन्हीं से जुड़े होते हैं जो दिल के बेहद करीब होते हैं।’
    ‘खुश रहा करो। तुम्हारी नसीहत तुम्हें सौंप रहा हूँ। मैं तो यह कलंदरी सीख गया हूँ अब तुम्हारी बारी है।’
    ग़ज़ब लिखते हैं अजीत जी। उनके शब्दों से भीतर का कहीं कुछ तेज़ झनझना जाता है।
    खैर मुझे लगता है कि मुझे अब पंक्तियों को कोट करना बंद कर देना चाहिए वरना तो यह पोस्ट पता नहीं कितनी लंबी हो जाएगी।
    अजीत जी आपको इस सुंदर किताब के लिए बधाई और शुभकामनाएँ।
    बाकी मेरा भी यही प्रश्न है
    बेमौसमी बारिश तुम्हारे स्लीपर का नंबर क्या है?

  2. संगसार सीमा

    डॉ0 अजित का यह एकालाप आत्मिक संवाद आपके ह्रदय के भीतरी तल को छुएगा । आप उसमें अपनी माया को तलाश कर उससे निरंतर संवाद कर सकते हैं। यह काल्पनिकता ही दरअसल एक सौन्दर्य बोध है जीवन का जिसे हर पल में बचाए रखना चाहिए …
    बस एक बात अखरती है कि इन पाठों का कोई शीर्षक नहीं है और सभी पाठ उसी एकरसता में लिखे गए हैं तो पाठक कई बार दिग्भ्रमित हो जाता है कि कहाँ से उसे छोङ़ा था । लेकिन मजे की बात यह है कि कोई सिक्वेंस की बाध्यता न होने पर आप कहीं से भी इसे पढ़ सकते हैं ….
    काव्यपरक आत्मसंवाद की यह अनोखी शैली उम्मीद है पाठकों को पसंद आएगी …
    डॉ0 अजित और श्वेतवर्णा प्रकाशन को बहुत – बहुत बधाई

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