शायद सच है (Shayad Sach Hai / Mahesh Chandra Joshi)

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आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहाँ कुछ भी स्पष्ट नहीं, कुछ भी विश्वसनीय नहीं। रचना-विचार व विवेक-बुद्धि के हर हल्क़े में सन्नाटा पसरा है। इस सब के बावज़ूद हिंदी ग़ज़ल के माध्यम से एक सकारात्मक आहट बार-बार हमें उस ओर ले जाती है जहाँ सन्नाटे टूटते नज़र आते हैं। महेश जोशी की ग़ज़लों को पढ़ते हुए हमें अपने भीतर आवेगमय आह्लाद का बोध होता है। कल्पनाओं की स्वप्निल दुनिया सामने खुलती नज़र आती है। कथ्य का एक मजबूत सिरा जीवन से गीतात्मक संवेदनाओं के पास आता दिखाई पड़ता है। इस संग्रह में अनेक ऐसी ग़ज़लें हैं जो आधुनिक जीवन के दुखों से उद्वेलित होकर रची गई हैं। करुणा तो आभासित होती ही है कहीं न कहीं प्रतिकार के स्वर भी सुनाई पड़ते हैं।
महेश जोशी अपनी ग़ज़लों में शिद्दत के साथ आज के समय का क्रूर, जटिल और छल से भरे यथार्थ का विश्लेषण करते हैं। यह कहने में कोई संकोच नहीं होता जीवन में निश्चित व्यक्तित्व का अभाव तथा अपूरित आकांक्षा की छटपटाहट महेश जोशी को ग़ज़ल का स्वर प्रदान करती है।
महेश जोशी की ग़ज़लों का विश्लेषण अंतर्मन की अनुभूतियों और सूक्ष्म कल्पनाओं का सामाजिक जीवन के परिवेश से प्रेरित होकर किया जा सकता है।
संग्रह की ग़ज़लें केवल वर्ण्य-विषय नहीं अपितु अपने युग विशेष का प्रतिधित्व करती हैं। ग़ज़लें बदलते परिवेश और परिवर्तित चेतना की माँग करती हैं।
अनिरुद्ध सिन्हा

Pages

120

Author

Mahesh Chandra Joshi 'Anal'

ISBN

978-81-19590-24-7

Format

Hardcover

Language

Hindi

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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