कविताओं का यह संग्रह, ‘शक्ति’ वास्तव में उस शक्ति का आह्वान है जो मनुष्य मात्र में निहित है; जिसका उसे ज्ञान हो न हो पर वही शक्ति मनुष्य की पहचान है। यह काव्य संग्रह एक यात्रा है जो मानव के अंतर्मन से गुजरती हुई फिर उसके अंतर्मन तक ही पहुँचती है; उसे सहलाती है, थपथपाती है, और जगाती है। डॉ. पांडेय की रचनाएँ बताती हैं कि मानव मन अपनी जटिलताओं में भी किस तरह सरल है, कभी सघन है तो कभी विरल है। इस संग्रह की कुछ कविताएँ तो मन को तलाशती हैं, कुछ उसे झकझोरती हैं तो कुछ उसे दिलासा भी देती हैं।
हमारे शास्त्रों ने शब्द को ब्रह्म माना है… और कविताओं में ये शब्द इस सृजनात्मकता से गुँथे होते हैं कि मानव का अपने अंदर के उस ब्रह्म से साक्षात्कार हो जाता है। डॉ. विष्णुप्रिया पांडेय की कविताएँ मानव मन के विभिन्न परतों को इतने करीने से एक-एक कर के खोलती हैं कि मानव स्वयं एक सुखद आश्चर्य से भर जाता है। इस संग्रह की कविताएँ मानव मन को ऐसी सकारात्मकता से उदीप्त कर देती है जो अपने-आप में अद्भुत है!
उम्मीद है ये कविताएँ पाठकों को उनके बहुत से प्रश्नों के उत्तर तो देंगी ही… साथ ही कुछ नए और ज़रूरी प्रश्न भी उठाएँगी।
-विष्णुप्रिया पांडेय
Reviews
There are no reviews yet.