अवनीश त्रिपाठी जी के नवगीत अनुशासन के दायरे में भावनाओं का आलोक बिखराते हैं, जहाँ द्वन्द्व व आक्रोश व्यंग्य के माध्यम से हमारे सामने प्रस्तुत होता है। आज जब समकालीनता के नाम पर हिन्दी नवगीत दिन विशेष/घटना विशेष की अख़बारी ख़बरों को शब्द प्रदान कर रहा है, वहीं अवनीश त्रिपाठी जी इस मामले में सतर्क नज़र आते हैं। ऐसा नहीं है कि समकालीन यथार्थ इनके नवगीतों में प्रस्तुत नहीं हुआ है लेकिन उसका स्वरूप सर्वकालिक या वृहदकालिक दृष्टिगत होता है। इनके नवगीतों में अभिव्यक्त समकालीन यथार्थ शैल्पिक विविधताओं, गूढ़ बिम्बों, प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्ति पाते हैं। जिस कारण वे अपने नवगीतों को सपाट बयानी और उथले यथार्थ से दूर रख पाते हैं।
Author | Awanish Tripathi |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-81-976575-4-2 |
Language | Hindi |
Pages | 120 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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