मधुकर जी के नवगीतों में विसंगतियों के स्वर अधिक सघन हैं, इसलिए उनकी अभिव्यक्ति भी अधिक मुखर है।मधुकर जी अपने युग काल-खण्ड के सच्चे आब्ज़र्वर हैं। अपने युग-काल की मूल्यहीनता, शोषण और विसंगतियों का जितना सूक्ष्म निरीक्षण-पर्यवेक्षण मधुकर जी ने किया है उतना अन्यत्र मुश्किल से ही दिखलाई पड़ता है। समग्र शताब्दी के सर्वसमर्थ नवगीतकार कविवर मधुकर जी अपने युग बोधी नवगीतों से पाठक को जहाँ एक ओर स्तब्ध जागरूक, आन्दोलित और उत्प्रेरित करते हैं वहीं अपनी अभिव्यंजना कौशल से उन्हें पूर्णतः संतृप्त भी करते हैं।
Author | Madhukar Ashthana |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-91081-00-3 |
Language | Hindi |
Pages | 140 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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