वर्तमान में दोहा छन्द लोकप्रियता के शिखर पर है। बड़ी संख्या में दोहे लिखे जा रहे हैं। ‘नया दोहा’ के दौर में भी ‘परम्परागत दोहा’ लिखने वालों की संख्या कम नहीं है। कौन, कैसा तथा क्या लिख रहा है; हम इस पर विमर्श करने की आवश्यकता नहीं समझते। महान जीवविज्ञानी चार्ल्स डार्विन ने कहा है कि जीवित वही रहता है जो योग्य है। यह बात भले ही उन्होंने जीव-जगत के लिए कही हो, किन्तु यहाँ भी लागू होती है। इसलिए हमारा पूरा ध्यान ऐसे दोहाकारों और दोहों की तलाश करने पर रहता है, जो स्वयं को भीड़ में जीवित रखने की क्षमता रखते हैं।
Author | सम्पादक रघुविन्द्र यादव एवम् डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ |
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Format | Paperback |
ISBN | 978-93-95432-76-4 |
Language | Hindi |
Pages | 96 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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