वह ज़माना ख़त्म हुआ, जब ग़ज़ल तवायफ़ों के घुँघरुओं में क़ैद थी। आज की ग़ज़ल खेत-खलिहानों में जाकर मेहनतकशों के माथे से पसीना पोंछ रही है। हिंदी ग़ज़ल ने साबित कर दिया है कि उसकी परिधि में परिवार, समाज और देश ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व है। हिंदी ग़ज़ल समाज, राजनीति, अध्यात्म, धर्म, प्रेम, युवा-चेतना, बाल-विमर्श, स्त्री-विमर्श आदि सभी विषयों को स्वयं में समेट रही है। हिंदी ग़ज़ल का श्रृंगार मांसल न होकर आत्मिक है।
प्रस्तुत पुस्तक हिंदी ग़ज़ल के शोध-छात्रों के लिए बहुत उपयोगी है। उन्हें एक ही स्थान पर विभिन्न प्रतिष्ठित रचनाकारों के विचार उपलब्ध हो जाएँगे। इस प्रकार उनके शोध की राह आसान होगी।
सीमा स्वयं भी बहुत अच्छी ग़ज़लकारा हैं। उन्होंने प्रश्नावली तैयार करने से लेकर रचनाकारों के उत्तर प्राप्त करने और सभी साक्षात्कारों को संकलित कर पुस्तक के रूप में लाने के लिए अथक परिश्रम किया है। अतएव वह प्रशंसा की पात्र हैं। उन्हें हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।
– डॉ. कृष्णकुमार ‘नाज़’
मुरादाबाद (उ.प्र.)
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