राही मानसरोवर के (Rahi Mansarovar Ke / Madhukar Ashthana)

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श्री शैलेन्द्र शर्मा जी ने अनेक विधाओं में सर्जना की है, जिसमें नवगीत, ग़ज़ल और दोहा मुख्य हैं। अपनी संस्था मानसरोवर के माध्यम से उन्होंने हिंदी साहित्य के विकास के लिए जो कार्य किया है, वह अनुकरणीय है। उनको अपने सृजन की विशिष्टता के परिणाम स्वरूप त्रिकालदर्शी और कालजयी रचनाकार स्वीकार किया जाना अतिश्योक्ति न होगा। प्रत्येक दृष्टि से मैंने शर्मा जी के प्रतिनिधि नवगीत संग्रह का अध्ययन किया, जिसमें युगीन विसंगतियों और विडम्बनाओं से उपजी विद्रूपता और विघटन, व्यक्तिगत कुंठाएँ-संत्रास को समष्टिगत पीठिका पर उन्होंने प्रभावशाली ढंग से अभिव्यंजित करते हुए अपनी रचना-धर्मिता का सफल निर्वहन किया है। भाषायी लयात्मकता, आनुभूतिक-सामरस्य एवं काव्यगत सम्वेदनात्मक उत्कृष्टता ने नवगीतों को जीवन्त बनाने में विशिष्ट भूमिका का निर्वाह किया है। मानवीय जीवन-दृष्टि से सम्पृक्त उनके नवगीत निराशा से आशा, विघटन में संगठन, अनेकता में एकता तथा असमानता में समानता की भावधारा बहाकर ‘तमसो मा ज्योर्तिगमय’ तथा ‘असतो मा सद्गमय’ का संदेश देने में पूर्णरूपेण सफल हैं।

Author

मधुकर अष्ठाना

Format

Paperback

Language

Hindi

Pages

160

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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