वाचिक परंपरा के धवल साहित्यकार-समालोचक: प्रो. मनमोहन मिश्र

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यह पुस्तक प्रो. मनमोहन मिश्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित है। प्रो. मिश्र वाचिक परंपरा के एक धवल साहित्यकार, समालोचक और अद्भुत चिंतक थे, जो राष्ट्रीय ख्याति के बड़े समालोचकों- साहित्यकारों पर भारी पड़ते। चूंकि वे वाचिक परंपरा के थे, अतएव उनका लिखित साहित्य सीमित है, प्रकाशित तो और भी कम। वे हिंदी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा – साहित्य तथा भारतीय दर्शन के उद्भट विद्वान थे। उनकी विश्लेषण प्रतिभा, समीक्षकीय दृष्टि और व्याख्यान शैली उनके विशद ज्ञान और चिंतन से संपृक्त अद्भुत थी। प्रोफेसर मनमोहन मिश्र, उनके विलक्षण व्यक्तित्व, वक्ततृत्व, उनकी विद्वता, और उनके कृतित्व पर हिन्दी साहित्य जगत में राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श निश्चय ही प्रासंगिक, अनिवार्य और एक महती कार्य है, दायित्व भी। विशेषकर आजादी के इस अमृत महोत्सव वर्ष में ऐसा करना मनमोहन बाबू के प्रति श्रद्धा का प्रकटन नहीं, हिन्दी जगत की आने वाली पीढ़ियों के लिए ज्ञान, संवेदना और संचेतना के कैनवास को अनिवार्य विस्तार देना है। डॉ. आर. के. नीरद द्वारा संपादित यह पुस्तक इस दृष्टि से विमर्श का महती सूत्र खोलती है।

Author

सम्पादक: डॉ. आर. के. नीरद

Format

Hardcover

ISBN

978-93-95432-01-06

Language

Hindi

Pages

218

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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