श्री कृष्ण कुमार चौधरी की प्रस्तुत कृति ‘प्रेम की विरह-साधना’ एक उच्छवासित चित्त के भावोद्गार के रूप में प्रकट हुई है। अपनी प्रिया-पत्नी ‘कविता’ के असामयिक दिवंगत होने की करुणा इसमें व्यक्त हुई है। साहित्य में इसे ही ‘स्वकीया प्रेम’ के रूप में जाना गया है। प्रेम की यह विरह-साधना एक प्रेमी पति के निश्छल हृदय की आर्त पुकार है। इसके शब्द-शब्द में एक मौन मधुर हाहाकार अश्रु-जल के समुद्र की तरह तरंगित होता हुआ दिखाई देगा। यही पारदर्शी प्रेम ‘प्लैटोनिक लव’-उदात्त प्रेम का अनुभव कराता है। लेखक ने जो भी लिखा है वह अंतरतम की गहराइयों से लिखा है। कहीं भी छिपाव-दुराव नहीं, ओट या आवरण नहीं, जो है वह साफ-सुथरा, खुला और बेबाक है।
मैं लेखक की इस दूसरी कृति का स्वागत करता हूँ, मेरी शुभकामना है कि निवात निस्कंप दीपशिखा की तरह प्रेम की यह ज्योति प्रकाश स्तंभ बनकर उनके जीवन और संपूर्ण समाज को आलोकित करती रहे।
–महेंद्र मधुकर,
एमेरिटस प्रोफेसर, यूजीसी
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