नील शब्द हमारे गाँव की क्रूरता से जुड़ा है। नील उन मजदूरों की कहानी है, जो नील की कटनी से नील की गोड़ाई और निर्माण तक के शोषण से जुड़े हैं। नील उन किसानों के लिए है जिनकी जमीन छीन ली गयी। जिन्हें अपने खेत में जबरदस्ती नील बोने के लिए बाध्य किया गया। यह नील की तीन कठिया प्रथा इतिहास से जुड़ा है। नील नीलहे साहेब के अत्याचार से जुड़ा है।
नील की कहानी भी अजीबो-गरीब है। उसने न सिर्फ कपड़ों को रंगा । चमड़ों और कलाकृतियों को रंगा। उसने इतिहास और संस्कृति को भी रंग दिया। नील एक ऐसे कूची का रंग जो यूरोप और ब्रिटेन से निकलकर भारत के धूल-घुसरित खेतों तक दुर्गम स्थानों तक, बाढ़-नदी-नालों तक पहुंच गया। उसका रंग भी गहराता गया।
नील की कथा कोई कपोल कल्पित नहीं। नील की कथा सच्चाईयों से भरी रोमांचक और शोषणकारी व्यवस्था से जुड़ी है। इसने बंगाल में नदिया का विद्रोह दिया तो महात्मा गांधी को भी पैदा किया। चंपारण के नील ने मोहनदास करमचन्द को महात्मा के रूप में रंग दिया।
नील ने भारतीय राजनीति से लेकर भारतीय संस्कृति को भी काफी हदतक प्रभावित किया। नील का रंग ही ऐसा था, जिसने भारत में अंग्रेजों की जड़ जमाने में मदद की। गाँव-गाँव फैले नील ने नीलकोठी, नील की खेती और नील के कार्य व्यवहार से परिचित कर दिया। उनके कारनामों से भी अवगत करा दिया।
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