कविवर तृप्तिनारायण झा की भक्तिमुक्ति प्रदा कृति में सुकीर्ति और सुकृति की संस्कृति है। सुकवि तृप्ति बाबू ने अखिल ब्रह्मांडनायक श्री राघवेंद्र सरकार के समग्र रूप का विशद और भक्ति भावपूर्ण वर्णन में विशिष्टता सिद्ध की है। इनका विषय स्वानतः सुखाय के साथ-साथ लोकोद्वार है। त्रिताप-हारक श्रीराम का कीर्तन काव्य का प्रयोजन है। श्रीराम से सुंदर कोई शीर्षक नहीं हो सकता। जगत् में श्रीराम से सुंदर कोई संज्ञा नहीं। इनकी सर्वांग सुंदरता में क्या सुंदर नहीं है? यह समीक्षा का नहीं, परीक्षा का प्रश्न है। प्रातः स्मरणीय आदिकवि वाल्मीकि जी का अनुभूत सारांश द्रष्टव्य है –
सुंदरे सुंदरो रामः सुंदरे सुंदरी कथा। सुंदरे सुंदरी सीता सुंदरे किं न सुंदरम्।।
~ डॉ. सच्चिदानंद पाठक
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