सत्येन्द्र तिवारी ने गीत की जो मधुवन्ती राह पकड़ी है, उसमें कल्पनाओं के इन्द्रधनुषी पुल हैं, निर्झरों के कल-कल निनाद हैं, भटकन का आनन्द है। तटबन्ध तोड़ती पीड़ा की छटपटाहट है, कस्तूरी मृग की दशा है तो किसी अज्ञात की छुअन के सुख भी लम्बी प्रतीक्षा है, किसी के मिलन की, किसी में विलय की।
विषय वस्तु एवं शिल्प सौंदर्य का समन्वय तिवारी जी के गीतों को श्रेष्ठता प्रदान करता है इनका रचना कर्म कृत्रिम एवं कल्पना के संसार में विचरण नहीं करता। उनके कथ्य की सादगी में खुलापन निर्मल जल की तरह प्रवाहमान है। उनके गीत मन को स्पर्श करने वाले हैं। इनका सृजनात्मक परिवेश नितान्त मौलिक एवं अकाल्पनिक है। अनुभूति के साथ अपनी संवेदनाओं को गीतों में सँजोया है तथा गीतों का हर शब्द चेतना के साथ उपस्थित है।
Author | Satyendra Tiwari |
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ISBN | 978-81-19590-32-2 |
Language | Hindi |
Pages | 112 |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
Format | Paperback |
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