मैं तो हूँ अलमस्त (Main To Hoon Almast / Suman Ashish)

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सुमन आशीष की ग़ज़लें वर्तमान की सच्चाई को व्यंजित करती हैं। ग़ज़लों के भीतर-भीतर ख़ुरदरे यथार्थ के साथ भविष्य की पदचाप भी सुनाई पड़ती है।
हम मानते हैं आज का जीवन हिंसा, तनाव, युद्ध, और आतंक से घिरा हैं लेकिन सुमन आशीष की ग़ज़लें जीवन जीने की सबल प्रेरक हैं। हम कह सकते हैं कि इनकी ग़ज़लों में सुंदर भविष्य और मानवीय सरोकारों की गूंज भी है। सबसे बड़ी बात है इनकी ग़ज़लें अबूझ नहीं हैं। इनमें कोई गोपनीयता नहीं है, इनकी ग़ज़लें मुक्ति की पक्षधर हैं, ऐसी ही ग़ज़लें सामाजिक उत्पादन की शक्ल में मनुष्य की ज़रूरत होती हैं। सुमन आशीष की ग़ज़लें मनुष्य की ज़रूरतों का, समकालीन जीवन की जटिलताओं, अंतर्विरोधों और अनुपेक्षित वैषम्य को व्यक्त करने में सक्षम है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इनकी ग़ज़लों में सिर्फ़ घुटन, तनाव और क्रोध है बल्कि अपने सौंदर्यबोध की अनुभूति को भी प्रमुखता मिली है…

-अनिरुद्ध सिन्हा

Author

Suman Ashish

Format

Paperback

ISBN

978-81-19590-03-2

Language

Hindi

Pages

96

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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