महुआ महके भोरे (Mahua Mahake Bhore / Dr. Premlata Tripathi)

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‘महुआ महके भोरे’ गीत काव्य में संकलित गीतों को पढ़ते हुए यह भाव पुष्ट हो जाता है कि प्रेम, कामना और राग का अन्तः सम्बन्ध गीत में अद्भुत आभा रचती है। इस गीत संग्रह में संकलित अधिकांश गीत उदात्त प्रेम की अटूट कड़ी बन कर टूटन, बिखराव व हताशा भरे सामाजिक जीवन का सम्बल बनने का अहसास कराते हैं।
लोक जीवन के प्रति आस्था कवयित्री के हर गीतों में प्रवाहित है, दर्द कविता का मर्म है. परिस्थितिजन्य विवशता भरे जीवन से उत्पन्न ‘मौन तड़पती बेबस मछली’ की यह पीड़ा अन्ततः कविता की तड़प बन जाती है। कविता अपने बिम्ब व प्रतीक विधानों के बलबूते अपनी भाव-प्रवणता में निखरती चलती है… महुआ एक वृक्ष नही वह जीवन के विराटत्व का संकेत है; वह आम जीवन की तृप्ति का प्रतीक है और लोक-जीवन का रस सार है, भोर… अंधकार के बाद उम्मीदों का शाश्वत प्रवाह है… मानवीय जीवन को गति देता हुआ उसके अन्दर नई ऊर्जा लेकर आता है। इस तरह कवयित्री की सोच के दायरे में मानवीय जीवन सम्वेगात्मक स्थितियाँ गीतों में नदी बन प्रवाहित होती सागर में समाहित हो जाती हैं यह बड़ी सोच प्रेमलता त्रिपाठी जी के रूप का परम सत्य है।

Author

डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Format

Paperback

ISBN

978-93-95432-44-3

Language

Hindi

Pages

104

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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