मदनी की महक (Madni Ki Mahak / Bheemrao ‘Jeevan’ Baitool)

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भीमराव जी ने अपने नवगीतों को आम आदमी की रोजमर्रा की ज़िंदगी से उठाया है। इसलिए उनके नवगीतों में भूख है तो कहीं उल्लास के पल भी हैं। व्यवस्थागत नीतियों के प्रति रोष है तो सरहद पर तैनात जांबाज़ों के लिए गर्व की अनुभूति भी है। पूस की सर्द रात की ठिठुरन सहने को विवश बेघर है तो बसंत की मादकता से उल्लसित लोक भी है। यानी जनबोध से जुड़े और जनजीवन को प्रभावित करते जितने भी संदर्भ हैं, वे उनके नवगीतों में सहज ही उभर कर आए हैं। अपनी अभिव्यक्ति में भीमराव जी ने भाव और भाषा के साथ कोई समझौता नही किया है और गीत-शिल्प के विधान को शिथिल होने नहीं दिया है। इसलिए ये नवगीत स्वयं को पढ़ा ले जाने में सक्षम भी हैं और पाठक के चिंतन फलक पर दस्तक देने में समर्थ भी।

Author

भीमराव ‘जीवन’ बैतूल

Format

Paperback

ISBN

978-81-971819-1-7

Language

Hindi

Pages

104

Publisher

Shwetwarna Prakashan

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