नवगीत सर्वथा अद्यतन होने का नाम है। नित्य-प्रति नवीनता और नवता की प्रस्तुति नवगीत सृजन की अंतर्वस्तु है। यह सत्य है कि किसी भी विधा में एक साथ कई पीढ़ियाँ अपने समकाल को एक साथ व्यक्त करती रहती हैं किन्तु दृष्टि की ताज़गी और दूरगामी सोच दोनों का सदैव ही एक सा महत्व रहा है। नवगीतों में इसी दृष्टि की ताज़गी की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती रचनाकार हैं गरिमा सक्सेना।
गरिमा सक्सेना प्रतिरोध के अक्षरों में सामाजिक चिंतन को पिरोती नवगीत-कवयित्री हैं। यह सत्य है कि नवगीत नवता की प्रस्तुति है। नवगीतों की नवता भाषा, शिल्प, भावों, विचारों एवं इंगितों-प्रतीकों की नवता है। यह नवता-बोध ही नवगीत को एक ही समकाल में रची जा रही अन्य विधाओं से अलगाता है। यही उसकी विशिष्टता भी है और सामर्थ्य भी। इसलिए नवगीत विधा को अभिव्यक्ति स्वरूप बनाने वाले रचनाकारों से दायित्वपूर्ण अपेक्षा होती रही है। बहुत सम्भव है कि नवगीत के विपक्ष में खड़ी नई कविता जो स्वयं को ‘कविता‘ अथवा ‘समकालीन कविता‘ कहे जाने का दावा करती फिरती है, नवगीतकारों द्वारा इस दायित्वपूर्ण अपेक्षा की प्रतिपूर्ति न किये जाने के कारण ही स्वयं को जीवन की जटिलताओं की एकमात्र प्रस्तोता कहलाने का मिथक पाल लेती है। मिथक होते ही हैं टूटने के लिए और यह युवा पीढ़ी के दायित्वपूर्ण लेखन से ही सम्भव है। गरिमा सक्सेना के नवगीत इस दायित्वबोध को समझते हुए ही रचे गये हैं।
आधुनिक जीवन की विसंगतियों एवं विडम्बनाओं के रेखांकन के साथ ही जीवन को जीवन बनाये रखने के लिए लोकमन में आस्था एवं विश्वास रोपना भी नवगीतकार का दायित्व है। आज का नवगीत यदि प्रतिरोध वैचारिकता से सम्पन्न हो तो उसमें आशावाद के लिए भी पर्याप्त स्थान होना चाहिए। वह राजनीति पर टिप्पणी करे तो विस्थापित लोक-मूल्यों के पुनर्स्थापना पर भी ध्यान दे। उत्सवधर्मी भारतीय मन में नये उत्सव भावों की रचना भी उसका दायित्व है। गरिमा सक्सेना के नवगीत इसी दायित्वबोध के साथ विसंगतियों की नदी पर पुल-निर्माण कर रहे हैं।
Pages | 144 |
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Author | Garima Saxena |
Format | Hardcover |
ISBN | 978-81-19590-78-0 |
Language | Hindi |
Publisher | Shwetwarna Prakashan |
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